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bajre ki kheti

बुवाई के बाद बाजरा की खेती की करें ऐसे देखभाल

बुवाई के बाद बाजरा की खेती की करें ऐसे देखभाल

बाजरा की  खेती की बुवाई जुलाई से अगस्त के बीच की जाती है। लेकिन किसान भाइयों को बुवाई के बाद भी फसल पर नजर रखनी होती है। यदि खेती की निगरानी अच्छी की गयी और खेती की जरूरत के हिसाब से देखभाल की गयी तो पैदावार अच्छी होती है। इससे किसान की आमदनी भी अच्छी हो जाती है। 

बुवाई के बाद सबसे पहले करें ये काम

बाजरे की पैदावार अच्छी बुवाई पर निर्भर करती है। यदि बीज अधिक बोया गया है और पौधों के बीच दूरी मानक के हिसाब से नही है तो पैदावार प्रभावित हो सकती है। यदि बीज कम हो बोया  गया हो तो उससे भी पैदावार प्रभावित होती है। इसलिये खेतों में बुवाई के समय ही एक क्यारी में अलग से बीज बो देने चाहिये ताकि जरूरत पड़ने पर क्यारी मे उगे पौधो की खेतों में रोपाई की जा सके। इसके लिए  बुवाई के बाद जब अंकुर निकल आयें तब किसानों को खेतों का निरीक्षण करना होगा। उस समय यह देखना चाहिये कि बुवाई के समय यदि बीज अधिक पड़ गया हो तो पेड़ों की छंटाई कर लेनी चाहिये। यदि पौधे कम हों या बीज कम अंकुरित हो सके हों तो पहले से तैयार क्यारी से पौधों को रोपना चाहिये।

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सिंचाई के प्रबंधन का रखें विशेष ध्यान

हालांकि बाजरा की बुवाई बरसात के मौसम होती है। बाजरा के बीजों को अंकुरित होने के लिए खेतों में नमी की आवश्यकता होती है। इसलिये  किसान भाइयों को बुवाई के बाद खेतों की बराबर निगरानी करनी होगी। यदि बुवाई के बाद वर्षा नही होती है तो  देखना होगा कि  खेत कहीं सूख तो नहीं रहा है। आवश्यकतानुसार सिंचाई करना चाहिये । आवश्यकता पड़ने पर दो से तीन बार सिंचाई करना चाहिये।  जब बाजरा में बाली या फूल आने वाला हो तब खेत की विशेष देखभाल करनी चाहिये। उस समय यदि वर्षा न हो रही हो और खेत सूख गया हो तो सिंचाई करनी चाहिये। इससे फसल काफी अच्छी हो जायेगी। 

जलजमाव हो तो करें पानी के निकालने का प्रबंध

बाजरा की खेती में किसान भाइयों को वर्षा के समय खेत की निगरानी करते समय यह भी ध्यान देना होगा कि कहीं खेत मे जलजमाव तो नहीं हो गया है। यदि हो गया हो तो पानी के निष्कासन की तत्काल व्यवस्था करनी चाहिये।  जलजमाव से भी फसल को नुकसान हो सकता है। बुवाई के बाद बाजरा की खेती की करें ऐसे देखभाल


खरपतवार को समाप्त करने के लिए करें समय-समय पर निराई गुड़ाई

बाजरे को खरपतवार से सबसे अधिक नुकसान पहुंचता है। चूंकि  इसकी खेती बरसात के मौसम में होती है तो किसान भाइयों को वर्षा के कारण खेत की देखभाल का समय नहीं मिल पाता है। इसके बावजूद किसान भाइयों को चाहिये कि वे बाजरा की खेती की अच्छी पैदावार के लिए खरपतवार का नियंत्रण करे। बुवाई के 15 दिन बाद निराई गुड़ाई करनी चाहिये। उसके बाद एक माह बार निराई गुड़ाई करायें। फसल की बुवाई के दो माह बाद  निराई गुड़ाई करायें। इसके अलावा खरपतवार होने पर एट्राजीन  को पानी में घोल कर छिड़काव करायें।  किसान भाई ध्यान रखें कि एट्राजीन का छिड़काव निराई गुड़ाई करने से तीन-चार दिन पूर्व करना चाहिये। इससे काफी लाभ होता है। 

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बुवाई के बाद उर्वरक भी समय-समय पर दें

बाजरा की अच्छी पैदावार के लिए किसान भाइयों के बाद बुवाई के बाद खेतों को समय-समय पर उर्वरकों की उचित मात्रा देनी चाहिये। एकल कटाई के लिए बुवाई के एक माह बाद 40 किलो नाइट्रोजन प्रति हेक्टेयर देनी चाहिये। कई बार कटाई के लिए प्रत्येक कटाई के बाद 30 किलो नाइट्रोजन प्रति हेक्टेयर देनी चाहिये। जस्ते की कमी वाले क्षेत्रों में 10-20 किलो जिंक सल्फेट प्रति हेक्टेयर देनी चाहिये। कई जगहों पर नाइट्रोजन की जगह यूरिया का प्रयोग किया जाता है। जहां पर यूरिया का प्रयोग किया जाता है वहां पर बुवाई से डेढ़ महीने के बाद 20 से 25 किलो यूनिया प्रति एकड़ के हिसाब से देना चाहिये। बाजरा में कीट एवं रोग प्रबंधन

कीट एवं रोग प्रबंध

बाजरे की खेती में अनेक कीट एवं रोग लगते हैं। किसान भाइयों को चाहिये कि खेतों में खड़ी फसल को कीटों एवं रोगों से बचाने के उपाय करने चाहिये। इसके लिए खेतों में खड़ी फसल की निरंतर निगरानी करते रहना चाहिये। जब भी जैसे ही किसी कीट या रोग का पता चले उसका उपाय करना चाहिये।  

आईये जानते हैं कि कौन-कौन से कीट व रोग बाजरा की खेती में लगते हैं और उन्हें कैसे रोका जा सकता है। 

दीमक : यह कीट बाजरा की खड़ी फसल को सबसे ज्यादा नुकसान पहुंचाता है। यह कीट जड़ से लेकर पत्ते तक में लगता है। जब भी इस कीट का पता चले किसान भाइयों को तत्काल सिंचाई के पानी के साथ क्लोरपाइरीफास 20 प्रतिशत ईसी ढाई लीटर हेक्टेयर के हिसाब से इस्तेमाल करना चाहिये।  इसके अलावा नीम की खली का प्रयोग करना चाहिये, इसकी गंध से दीमक भाग जाती है।

तना छेदक कीट: यह कीट भी खड़ी फसल में लगता है। यह कीट पौधे के तने में लगता है और पूरे पौधे को चूस जाता है। इससे पौधे की बढ़वार रुक जाती है।  इससे बाजरे की फसल को बहुत नुकसान पहुंचता है। इस कीट का नियंत्रण करने के लिए कार्बोफ्यूरान 3 जी 20 किलो अथवा फोरेट 10 प्रतिशत सीजी को 500 से 600 लीटर पानी में घोलकर प्रति हेक्टेयर की दर से छिड़काव करना चाहिये। 

हरित बालियां रोग: इस रोग के लगने के बाद बाजरा की बालियां टेढ़ी-मेढ़ी और बिखर जाती हैं।  इस रोग के दिखते ही खरपतवार निकाल कर जीरम 80 प्रतिशत डब्ल्यूपी 2.0 किलो को 500-600 पानी में घोलकर प्रति हेक्टेयर छिड़काव करना चाहिये। 

सफेद लट: यह लट पौधों की जड़ों को काट कर फसल को विभिन्न अवस्थाओं में नुकसान पहुचाती है।  सफेद लट के कीट प्रकाश के प्रति आकषिँत होते हैं। इसलिये प्रकाश पाश पर आकर्षित कर सभी को एकत्रित करके मिट्टी के तेल मिले पानी में डालकर नष्ट कर दें। 

हरी बाली रोग: यह रोग अंकुरण के समय से पौधों की बढ़वार के समय लगता है। इस रोग से पौधों की पत्तियां पीली पड़ जातीं हैं और बढ़वार रुक जाती है।  ऐसे रोगी पौधों को खेत से बाहर निकाल कर नष्ट करें और कीटनाशकों का इस्तेमाल करें। 

अरगट रोग: यह रोग बाजरा में बाली के निकलने के समय लगता है।  इससे फसल को काफी नुकसान होता है। इस रोग के लगने के बाद पौधां से गुलाबी रंग का चिपचिपा गाढ़ा रस निकलने लगता है। यह पदार्थ बाद में भूरे रंग का हो जाता है। यह बालियों में दानों की जगह भूरे रंग का पिंड बन जाता है। ये जहरीला भी होता है। इसकी रोकथाम के  लिए सबसे पहले खरपतवार हटायें। उसके बाद 250 लीटर पानी में 0.2 प्रतिशत मैंकोजेब मिलाकर प्रति एकड़ के हिसाब से छिड़काव करें। लाभ मिलेगा। 

टिड्डियों का प्रकोप: बाजरा की खेती में पौध बड़ा होने के कारण इसमें टिड्डियों के हमले का खतरा बना रहता है।  हमला करने के बाद टिड्डी दल पौधे की सभी पत्तियों को खा जाता है और इससे पैदावार को भी नुकसान होता है।  जब भी टिड्डी दल का हमला हो तो किसान भाइयों को चाहिये कि इसकी रोकथाम के लिए खेत में फॉरेट का छिड़काव करें। 

बाजरे की कटाई

बाजरे की कटाई उस समय करनी चाहिये जब दाना पूरी तरह पक कर तैयार हो जाये। यह माना जाता है कि बुवाई के 80 दिन से लेकर 95 दिन के बीच दाना पूरी तरह से पक जाता है। उसके बाद बाजरा के पौधे की कटाई करनी चाहिये। उसके बाद इसके सिट्टों यानी बालियों को अलग करके उनमें से दाना निकालना चाहिये।

बाजरे की खेती (Bajra Farming information in hindi)

बाजरे की खेती (Bajra Farming information in hindi)

दोस्तों आज हम बात करेंगे, बाजरा के टॉपिक पर बाजरा जो सभी फसलों में प्रमुख माना जाता है। किसानों को बाजरे की फसल से काफी अच्छा मुनाफा होता है। बाजरे से जुड़ी सभी प्रकार की आवश्यक बातों को जानने के लिए हमारी इस पोस्ट के अंत तक जरूर बने रहे:

बाजरा की खेती:

बाजरा भारत की सबसे ज्यादा उत्पादन वाली फसल है। इसीलिए भारत देश में बाजरे को अग्रणी फसलों की श्रेणी में रखा जाता है।भारत देश में करीब 85 लाख से अधिक क्षेत्रों में बाजरे की खेती की जाती है। बाजरे का उत्पादन करने वाले राज्य कुछ इस प्रकार है जहां बाजरे की खेती की जाती है। जैसे, महाराष्ट्र, राजस्थान, गुजरात, उत्तर प्रदेश और हरियाणा राज्यों में भारी मात्रा में बाजरे का उत्पादन होता है।

बाजरा में मौजूद पोषक तत्व:

बाजरे में विभिन्न विभिन्न प्रकार के आवश्यक तत्व मौजूद होते हैं इसीलिए इसे आहार का मुख्य साधन माना जाता है। किसानों के अनुसार भारत देश में शुष्क और अर्धशुष्क क्षेत्रों में इस फसल को प्रमुख खाद्य भी कहा जाता है। बाजरा ना सिर्फ मनुष्य अपितु पशुओं के भी पौष्टिक चारे का माध्यम है। बाजरे की खेती किसान पशुओं को चारा देने के लिए भी करते हैं। बाजरा के दानों में प्रोटीन की मात्रा 10.5 से लेकर14. 5% तक मौजूद होती है। पोषक तत्व की दृष्टिकोण से देखें तो यह बहुत ही उपयोगी है।

 बाजरा में लगभग वसा 4 से 8 % होता है वहीं दूसरी ओर कार्बोहाइड्रेट खनिज तत्व कैल्शियम केरोटिन राइबोफ्लेविन, विटामिन बी तथा नायसिन और विटामिन b6 भी भरपूर मात्रा में बाजरे में मौजूद होते हैं। गेंहू और चावल के मुकाबले बाजरे में अधिक मात्रा में लौह तत्व मौजूद होते हैं। बाजरे में भरपूर मात्रा में ऊर्जा मौजूद होती है इसी कारण इसका सेवन सर्दियों में ज़्यादा करते हैं। प्रोटीन, कैल्शियम फास्फोरस, और खनिज लवण, हाइड्रोरासायनिक अम्ल, बाजरे में उपयुक्त मात्रा में पाया जाता है। 

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पूसा संस्थान की पूसा कम्पोजिट 612, पूसा कंपोजिट्स 443, पूसा कम्पोजिट 383, पूसा संकर 415, एचएचबी 67, आर एस बी 121, MH169 जैसी अनेक क्षेत्रीय किसमें देश में मौजूद हैं।

बाजरे की फसल के लिए भूमि का चयन:

बाजरे की फसल के लिए किसान सभी प्रकार की भूमि को उपयुक्त बताते हैं, परंतु बलुई दोमट मिट्टी सबसे सर्वोत्तम मानी जाती है। बाजरे की फसल के लिए जल निकास की व्यवस्था को उचित बनाए रखना आवश्यक होता है। बाजरे की फसल के लिए अधिक उपजाऊ भूमि की कोई जरूरत नहीं पड़ती हैं। क्योंकि भारी भूमि कम अनुकूलित होती है।

बाजरे की खेती के लिए उपयुक्त जलवायु:

बाजरे की खेती के लिए गर्म जलवायु सबसे उपयोगी होती है।बाजरे की खेती 400 से 600 मिलीमीटर वर्षा वाले क्षेत्रों में अच्छी तरह से कर सकते हैं। बाजरे की खेती के लिए सबसे उपयुक्त तापमान 32 से 37 सेल्सियस बेहतर माना जाता है। बाजरे की फसल का उत्पादन करने के लिए। कभी-कभी ऐसा होता है जब बाजरे पुष्पन अवस्था में हो और बारिश हो जाएगा। यह आप पानी के फव्वारों के जरिए सिंचाई कर दे। तो बाजारों के दाने धुल जाते हैं और बाजरे का उत्पादन नहीं हो पाता है। इस प्रकार बाजरे की खेती करते वक्त जलवायु का खास ख्याल रखें। 

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बाजरे की फ़सल के लिए (फसल चक्र की व्यवस्था)

बाजरे की फसल के लिए, फसल चक्र की व्यवस्था बनाना बहुत ही उपयोगी होता है। इस प्रक्रिया को अपनाने से मिट्टियों की उर्वरता बनी रहती है। यह फसल चक्र आपको एकवर्षीय बनाने की आवश्यकता होती है। या फसल चक्र कुछ इस प्रकार बनाए जाते हैं जैसे: गेहूं और जौ, बाजरा सरसों और तारामीरा, या फिर बाजरा चना, मटर या मसूर, बाजरा गेहूं, सरसों, ज्वार, मक्का चारे के लिए इस्तेमाल किया जाता है, तथा बाजरा, सरसों ग्रीष्मकालीन, मूंग आदि फसल चक्र बनाए जाते हैं।

बाजरे की फसल के लिए खेत को तैयार करें:

बाजरे की फसल को बोते समय खेत को भली प्रकार से तैयार करने की आवश्यकता होती है। गर्मी के दिनों में खेतों को गहरी अच्छी जुताई की आवश्यकता होती है। साथ ही साथ उत्तम जल निकास की व्यवस्था खेतों में बनाना आवश्यक होता है। खेत जोतने के बाद, खेतों को अच्छी तरह से समतल कर लेना चाहिए। बाजरे की फसल का अच्छा उत्पादन प्राप्त करने के लिए हल द्वारा मिट्टी को अच्छी तरह से पलटे, दो से तीन बार जताई करें फिर उसके बाद बीज रोपण करें। बाजरे की फसल को सुरक्षित रखने के लिए तथा विभिन्न प्रकार के प्रकोप जैसे, दीमक और लट से बचाने के लिए आख़िरी जुताई के दौरान 25 किलोग्राम प्रति हेक्टेयर दर से फोरेट का इस्तेमाल कर खेतों में डाले। बाजरे की खेती के लिए शून्य जुताई विधि किसान उत्तम बताते हैं। इसके लिए आपको खेत समतल करना होता है मिट्टी को फसल के लिए अवशेषों तथा वानस्पतिक अवशेषों का आवरण बनाए रखने की आवश्यकता होती है। किसान इस प्रक्रिया को खेत के लिए सबसे लाभप्रद बताते हैं।

जानिए बाजरा की खेती से जुड़ी अहम बातें

बाजरे की फसल के लिए खरपतवार प्रबंधन करना:

कृषि विशेषज्ञों के अनुसार बाजरे की फसल के लिए खरपतवार प्रबंधन करना बहुत ही आवश्यक होता है। इसके लिए आपको लगभग 1 किलोग्राम एट्राजीन या पेंडिमिथालिन 500 से 600 लीटर पानी में घोल कर प्रति हेक्टेयर के हिसाब से छिड़काव की आवश्यकता होती है। छिड़काव की यह प्रक्रिया बुवाई के बाद या फिर अंकुरण आने से पहले करते हैं। बाजरे की फसल बुवाई के बाद लगभग 25 से 30 दिनों के बाद खुरपी या कसौला की सहायता से खरपतवार को निकालना उपयोगी होता है। 

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बाजरे की फसल के लिए कीट प्रबंधन की व्यवस्था:

  • बाजरे की फसल को दीमक के प्रकोप से बचाने के लिए आपको 2 किलोग्राम प्रति हेक्टेयर की दर से क्लोरोपाइरीफॉस की जरूरत पड़ती है। क्लोरोपाइरीफॉस का इस्तेमाल आप को जड़ों में और जब थोड़ी हल्की बारिश हो तब मिट्टियों में मिलाकर अच्छी तरह से बिखेर देना चाहिए।
  • तना मक्खी, जैसी समस्याओं और गिडारें और इल्लियां की शुरुआती अवस्था में पौधों की बढ़वार को काटकर अलग कर देना। इस अवस्था में पौधे सूख जाते हैं इस प्रकोप की रोकथाम करने के लिए आपको लगभग 15 किलोग्राम प्रति हेक्टेयर की दर से फॉरेट 25 किलोग्राम, फ्यूराडोन, 3%और मैलाथियान, 5% 25 किलोग्राम प्रति लीटर के हिसाब से खेतों में डालना उपयोगी होता है।
  • सफेद लट बाजरे की फसल को बहुत नुकसान पहुंचाते हैं। इस रोग की रोकथाम करने के लिए आपको फ्यूराडॉन 3% फॉरेट 10% दानों को करीब 12 किलोग्राम प्रति हेक्टेयर की दर से बाजरे की बुवाई करते टाइम मिट्टियों में मिलाना आवश्यक होता है।

दोस्तों हम उम्मीद करते हैं, कि आपको हमारा यह आर्टिकल बाजरा पसंद आया होगा। हमारे इस आर्टिकल में बाजरेकीफसलसेजुड़ी सभी तरह की आवश्यक जानकारी मौजूद है। जो आपके बहुत काम आ सकती हैं। हमारे इस आर्टिकल को ज्यादा से ज्यादा अपने दोस्तों और सोशल मीडिया तथा अन्य प्लेटफार्म पर शेयर करते रहे। धन्यवाद।

ओडिशा में आदिवासी परिवारों की आजीविका का साधन बनी बाजरे की खेती

ओडिशा में आदिवासी परिवारों की आजीविका का साधन बनी बाजरे की खेती

भुवनेश्वर। ओडिशा में बाजरे की खेती (Bajre ki Kheti) धीरे-धीरे आदिवासी परिवारों की आजीविका का साधन बन रही है। मिलेट मिशन (Odisha Millets Mission) के तहत बाजरे की खेती को फिर से बड़े पैमाने पर पुनर्जीवित करने की कोशिश की जा रहीं हैं। इससे राज्य के आदिवासी परिवारों की आर्थिक स्थिति में सुधार की संभावना दिखाई दे रहीं हैं।
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सरकार राज्य के आदिवासी बाहुल्य क्षेत्र में बाजरे की खेती को बढ़ावा देने के लिए प्रयासरत है। इसके जरिए ही इन परिवारों को आर्थिक मजबूती देने की कोशिश है।

कम बारिश में अच्छी उपज देती है बाजरे की फसल

- बाजरे की फसल कम बारिश में भी अच्छी उपज देती है। इसीलिए उम्मीद जताई जा रही है कि यहां के आदिवासी परिवारों की बाजरे की खेती सबसे अधिक लाभकारी करेगी। यही कारण है कि ओडिशा के तीसरे बड़े आबादी वाले मयूरभंज जिले में महिला किसानों की संख्या लगातार बढ़ रही है।
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राज्य के 19 जिलों में बाजरे की खेती को किया जा रहा है पुनर्जीवित

- ओडिशा राज्य के 19 जिलों में बाजरा की खेती को पुनर्जीवित करने की योजना बनाई गई है। इसमें 52000 हेक्टेयर से अधिक का रकबा शामिल किया गया है। साथ ही 1.2 लाख किसानों को बाजरे की खेती से जोड़ा जा रहा है।
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महिला किसानों की भागीदारी है प्रसंशनीय

- ओडिशा में बाजरे की खेती को लेकर आदिवासियों में जबरदस्त उत्साह है। इनमें खासतौर पर महिला किसानों की भागीदारी प्रसंशनीय है। कई जगह अकेले महिलाएं ही पूरी तरह बाजरे की खेती कर रहीं हैं। वहीं कई स्थानों पर महिलाएं अपने पुरुष समकक्षों संग धान की खेती में महत्वपूर्ण जिम्मेदारी निभा रहीं हैं। महिलाएं अपनी उपज को अच्छे भाव में बाजार में बेच रहीं हैं।

मिशन मिलेट्स के तहत खेती को मिल रहा है बढ़ावा

- राज्य में मिशन मिलेट्स के तहत बाजरे की खेती को बढ़ावा दिया जा रहा है। इसमें सरकार भी किसानों की मदद कर रही है। किसान बंजर जमीन को उपजाऊ बनाकर बाजरे की खेती करके अच्छा मुनाफा कमा रहे हैं। इस कार्यक्रम का शुभारंभ साल 2017 में हुआ था। इन दिनों रागी, फोक्सटेल, बरनार्ड, ज्वार, कोदो व मोती जैसी विभिन्न किस्मों की खेती की जा रही है। यही बाजरे की खेती आदिवासी परिवारों की आजीविका का साधन बन रहा है। ----- लोकेन्द्र नरवार
देश को आत्मनिर्भर बनाने के लिए है इस फसल की खेती जरूरी विदेश मंत्री ने कहा

देश को आत्मनिर्भर बनाने के लिए है इस फसल की खेती जरूरी विदेश मंत्री ने कहा

वर्ष 2023 को संयुक्त राष्ट्र द्वारा अंतर्राष्ट्रीय पोषक अनाज वर्ष घोषित किया गया है। केन्द्रीय मंत्री नरेंद्र सिंह तोमर की मानें तो संयुक्त राष्ट्र ने यह कदम प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की पहल पर लिया है। हाल ही में केंद्रीय कृषि और कल्याण मंत्री नरेंद्र सिंह तोमर और विदेश मंत्री डॉक्टर सुब्रह्मण्यम जयशंकर की अध्यक्षता में अंतर्राष्ट्रीय पोषक अनाज वर्ष के प्रीलॉन्च के उत्सव को मनाया गया। इसमें मिलेट के घरेलू उत्पादन को बढ़ाने के बारे में बात की गई है।


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विदेश मंत्री के अनुसार मिलेट (MILLET) की खेती करने से ना सिर्फ देश आत्मनिर्भर बनेगा बल्कि इससे वैश्विक खाद्य समस्या का जोखिम भी कम होगा। इसके अलावा अगर किसानों के दृष्टिकोण से देखा जाए तो ये किसानों को आत्मनिर्भर बनाएगा और विकेंद्रीकरण उत्पादन में भी इससे फायदा होगा।

क्या है मिलेट और क्यों बढ़ रही है वैश्विक बाजार में मांग

मिलेट (MILLETS) को जिस नाम से हम जानते हैं, वह है बाजरा। जी हां छोटे छोटे दाने वाला यह अनाज आजकल बहुत लोकप्रिय हो रहा है। ऐसे में सोचने वाली बात है, कि मिलेट के अचानक से लोकप्रिय होने का कारण क्या है। कोविड-19 के दौरान वैश्विक खाद संकट एक बार फिर से सामने आ गया था, और ऐसे में बाजरा एक ऐसा अनाज है, जो कम पानी और विषम परिस्थितियों में भी उगाया जा सकता है। इसके अलावा कोविड-19 से लोग अपने स्वास्थ्य को लेकर भी काफी सजग हो गए हैं, और बाजरे को हमेशा से ही स्वास्थ्य के लिए अच्छा माना गया है। इसीलिए जिस तरह से जलवायु परिवर्तन हो रहा है उस को ध्यान में रखते हुए कुछ इस तरह की ही खेती की ओर हमें ध्यान देना चाहिए ताकि हम देश और अंतर्राष्ट्रीय स्तर पर खाद्य सुरक्षा के बारे में पहल कर सकें।


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क्या है मिलेट के पोषक तत्व

मिलेट में पाए जाने वाले पोषक तत्व के बारे में बात की जाए तो लिस्ट काफी लंबी है, इसमें आपको भरपूर मात्रा में फाइबर, कैल्शियम, आयरन, फास्फोरस, मैग्नीशियम, पोटेशियम, विटामिन बी-6 और केराटिन भी पाया जाता है।

क्या गुण बनाते हैं मिलेट को खास

पहले से ही मिलेट को कई अलग-अलग तरह के नामों से जाना जाता है, इसे ‘भविष्य की फसल’ या फिर ‘चमत्कारी अनाज’ भी कहा गया है। उसका कारण है कि मिलेट में पोषक तत्व तो होते ही हैं साथ ही विषम परिस्थितियों और कम लागत में भी उससे उत्पादन होने के कारण इसे खास माना गया है। अगर किसी किसान के पास सिंचाई आदि की सुविधाएं नहीं है, तब भी वह मिलेट की खेती कर सकता है।

पर्यावरण के लिए भी है चमत्कारी

जैसा कि बताया जा चुका है, कि मिलेट की खेती में पानी तो कम लगता ही है साथ ही इसकी खेती में कार्बन उत्सर्जन भी कम होता है। जो सुरक्षित वातावरण बनाए रखने के लिए लाभकारी है। यही कारण है कि भारत में बहुत से राज्य एक से अधिक मिलेट की नस्लों का उत्पादन करते हैं।

इससे जुड़े स्टार्टअप को दी जा रही है आर्थिक सहायता

इसके उत्पादन को बढ़ाने के लिए जो भी स्टार्टअप काम कर रहे हैं, उनको सरकार की तरफ से सहायता भी दी जा रही है। आंकड़ों की मानें तो लगभग 500 से ज्यादा स्टार्टअप इसके उत्पादन के लिए काम कर रहे हैं, जिनमें से 250 स्टार्टअप को भारतीय मिलेट अनुसंधान की तरफ से चयनित किया गया है। उसमें से 70 के करीब स्टार्टअप्स को 6 करोड़ से ज्यादा का इन्वेस्टमेंट दिया जा चुका है।


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पिछले काफी सालों से यह अनाज लोगों की थाली से गायब रहा था और इसका असर आजकल लोगों के स्वास्थ्य पर सीधे तौर पर देखा जा सकता है। अब धीरे ही सही लेकिन लोगों का ध्यान इसकी ओर फिर से आकर्षित हो रहा है।